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कितना बदल गया ये देश,
चाहे बोल चाल हो या भेष।
पहले बहती थी यहाँ नदियाँ प्रेम की,
बरसते थे बादल संस्कारो के।
जगह - जगह अलग - अलग मिलती थी संस्कृति यहाँ,
लहलहाते थे खेत मिलती थी सुकून की हवा।
गाँव में वो ख़ुशी भरे गीतों की धुन,
महिलाओं का संगीत और कोयल की गुनगुन।
कहाँ गए वो दिन किधर गई वो राते,
जहाँ तारो भरी रात में हमने की थी अपने ख्वाबो की बरसाते।
क्या ये वही देश है जिसमे कहीं बसते थे देशभक्त,
जो न्योछावर करते थे देश पर अपनी ज़िन्दगी और मोहब्बत।
ये वही देश है ना, जिसमे जन्म लिया था भगत सिंह ने,
दी थी कुर्बानी, भगाया था दुश्मनों को जिसने।
कहाँ गए वो नौजवान,
किधर गई वो शान।
क्या भूल गए हम उन्हें,
या चाहते नहीं याद करना अब उन्हें।
हम क्यूँ बन गए हैं इतने स्वार्थी,
अंधे हो गए हैं या हम हो गए है लालची।
कहाँ गया वो नौजवानों का देश पर मिटने का पागलपन,
जो देता था देश को सुरक्षा और अपनापन।
क्या वो नौजवान आज हो गए हैं सीमित, फेसबुक और ई-मेल तक,
क्या मर गया है उनके अंदर का वो देशभक्त।
अब सुरक्षित नहीं रहीं हैं यहाँ माँ और बहने,
डर और भय फैला दिया है इन नौजवानों ने।
हर एक राक्षस बैठा है हर एक मोड़ पर,
कब तक जियेंगे ऐसे सहम कर घर के एक छोर पर।
आज भगत सिंह जिंदा होते तो कहते, ये देश नहीं है, समाज नहीं है, ये है जंगल राज,
ना जाने क्यूँ दिया मैंने इतना बड़ा त्याग।
ऐ दुनिया वालो तुमसे बस करती हूँ मैं इतनी सी प्रार्थना,
ला दो इस देश में वही खुशियाँ और ले कर आओ खुद में वो भावना।
© 2013 Rinki Negi
चाहे बोल चाल हो या भेष।
पहले बहती थी यहाँ नदियाँ प्रेम की,
बरसते थे बादल संस्कारो के।
जगह - जगह अलग - अलग मिलती थी संस्कृति यहाँ,
लहलहाते थे खेत मिलती थी सुकून की हवा।
गाँव में वो ख़ुशी भरे गीतों की धुन,
महिलाओं का संगीत और कोयल की गुनगुन।
कहाँ गए वो दिन किधर गई वो राते,
जहाँ तारो भरी रात में हमने की थी अपने ख्वाबो की बरसाते।
क्या ये वही देश है जिसमे कहीं बसते थे देशभक्त,
जो न्योछावर करते थे देश पर अपनी ज़िन्दगी और मोहब्बत।
ये वही देश है ना, जिसमे जन्म लिया था भगत सिंह ने,
दी थी कुर्बानी, भगाया था दुश्मनों को जिसने।
कहाँ गए वो नौजवान,
किधर गई वो शान।
क्या भूल गए हम उन्हें,
या चाहते नहीं याद करना अब उन्हें।
हम क्यूँ बन गए हैं इतने स्वार्थी,
अंधे हो गए हैं या हम हो गए है लालची।
कहाँ गया वो नौजवानों का देश पर मिटने का पागलपन,
जो देता था देश को सुरक्षा और अपनापन।
क्या वो नौजवान आज हो गए हैं सीमित, फेसबुक और ई-मेल तक,
क्या मर गया है उनके अंदर का वो देशभक्त।
अब सुरक्षित नहीं रहीं हैं यहाँ माँ और बहने,
डर और भय फैला दिया है इन नौजवानों ने।
हर एक राक्षस बैठा है हर एक मोड़ पर,
कब तक जियेंगे ऐसे सहम कर घर के एक छोर पर।
आज भगत सिंह जिंदा होते तो कहते, ये देश नहीं है, समाज नहीं है, ये है जंगल राज,
ना जाने क्यूँ दिया मैंने इतना बड़ा त्याग।
ऐ दुनिया वालो तुमसे बस करती हूँ मैं इतनी सी प्रार्थना,
ला दो इस देश में वही खुशियाँ और ले कर आओ खुद में वो भावना।
© 2013 Rinki Negi
Comments are invited..
ReplyDeletePretty nice..keep it up.. (h)
ReplyDeleteVery nice Deshbhakti poem..
ReplyDeleteAwesome post...I love my India
ReplyDeleteGud...
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